कबीरदास का जीवन परिचय हिंदी में | कबीरदास के गुरु कौन थे

दोस्तों, इस लेख कबीरदास का जीवन परिचय हिंदी में हमने कबीरदास के गुरु कौन थेकबीरदास का जन्म और मृत्यु और कबीरदास का जन्म कब हुआ इन सभी सवालों की जानकारी यहाँ उपलब्ध की है। 

कबीरदास जी, भारतीय संस्कृति के महान संतों में से एक थे। वे संत के अलावा एक कवि, समाज सुधारक और दार्शनिक भी थे जिन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से समाज के मुद्दों को उठाया और उनका समाधान भी दिया। कबीरदास के दोहों और भजनों का संग्रह उनकी साहित्यिक योगदान के रूप में जाना जाता है।

कबीरदास का जीवन परिचय हिंदी में | Kabir Das ka Jivan Parichay

कबीरदास जी एक महान संत थे जिन्होंने अपनी कविताओं और दोहों के माध्यम से समाज को जागरूक करने का काम किया था। वे भारत के समाज सुधारकों में से एक थे जो अपने उत्साह, दृढ़ता और संवेदनशीलता के लिए जाने जाते थे। उन्होंने धर्म, संस्कृति और समाज के मुद्दों पर अपने विचारों को बताया था।

वे सभी धर्म का आदर करते थे और सभी को भक्ति का मार्ग बताते थे। उन्होंने धर्म पर, जाति व्यवस्था पर, जाति विवेकता पर और मूर्खता आदि विषयों पर अपनी कविताओं में लिखा है। 

कबीर जी की कविताएं व्यापक रूप से संगीत, प्रेम, भक्ति और सामाजिक अभिव्यक्ति के विषयों पर हैं। उन्होंने भजनों को उनकी कविताओं के माध्यम से और भी सुंदर ढंग से लिखा है । वे अपनी कविताओं के माध्यम से जीवन की समस्याओं, सामाजिक बुराइयों और आध्यात्मिक विचारों को सुलझाते थे।

कबीरदास का जीवन परिचय हिंदी में kabir das ka jivan parichay
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कबीरदास का जन्म | कबीरदास का जन्म कब हुआ

कबीरदास के जन्म के बारे में कुछ ठीक से पता नहीं है। ऐसा माना जाता है कि इनका जन्म 1398 ई० में वाराणसी के एक गांव लहरतारा में हुआ था।  वाराणसी को अब काशी नाम से भी जानते है। 

इनके माता का नाम नीमा और पिता का नाम नीरू था। ऐसी मान्यता है कि इनका जन्म एक हिन्दू ब्राम्हण महिला के घर हुआ था जो कि एक विधवा थी। समाज के डर से उसने इन्हें लहरतारा के एक तालाब के किनारे रख दिया था जहाँ यें नीरू और नीमा को मिले। उनकी कोई संतान नहीं होने के कारण उन्होंने इनका पालन-पोषण किया। इनके माता पिता जुलाहे थे। इनके पत्नी का नाम लोई था और इनकी दो संताने भी थी। कबीर के लड़के का नाम कमाल तथा लड़की का नाम कमाली था । 

हालांकि, इन जानकारियों की सत्यता को लेकर भी कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं है। उनके जन्म के बारे में एक दोहा बहुत प्रचलित है जिसकी पंक्तियाँ निम्नलिखित है। 

“चौदह सौ पचपन साल गए, चन्द्रवार एक ठाठ भरा || 
जेठ सुदी बरसायत को, पूरण मासी प्रकट भये ||”

इस छंद के अनुसार कबीर का जन्म संवत 1455 में ज्येष्ठ की बारिश में पूर्णिमा के दिन हुआ था।  इसलिए कबीरपंथी इस दिन को बरसायत महातम के नाम से भी  जानते है। इस दिन को कबीरपंथी एक उत्सव के तौर पर मनाते है क्युकि इसी दिन वे उनके माता पिता नीमा और नीरु को मिले थे। 

कबीर जी ने अपना सारा जीवन मानव कल्याण में लगाया था। उनको भारतीय इतिहास में एक संत के साथ -साथ बहुत बड़े साहित्यकार और कवि के तौर पर जाना जाता है।  इनके द्वारा लिखी गयी रचनाये बहुत ही लोकपिर्य और अमर है।

कबीर दास की साहित्यिक सेवाएँ

कबीर दास जी पढ़े लिखे नहीं थे। उनके दोहो को उनके शिष्य लिखा करते थे। कबीर जी की साहित्यिक सेवाएं अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

कबीरदास का जीवन परिचय हिंदी में kabir das ka jivan parichay
कबीरदास का जीवन परिचय हिंदी में 

कबीर दास ने अपने समय के सामाजिक मुद्दों पर गंभीर रूप से विचार रखें थे और इसे अपनी कविताओं के माध्यम से व्यक्त भी किया। उनकी साहित्यिक सेवाएं इस प्रकार हैं। 

दोहे

कबीर दास ने दोहे का उपयोग अपनी साहित्यिक रचनाओं में बहुत किया है। उनके दोहे में समाज के नियमों, धर्म और आध्यात्मिक उत्थान के मुद्दों पर विचार है.

भजन

कबीर दास ने भजन का उपयोग अपनी साहित्यिक रचनाओं में भी किया था। उनके भजन समाज के लोगों को संगीत और भक्ति के माध्यम से आध्यात्मिक उत्थान करने में मदद करते हैं।

ग्रंथ

कबीर दास की साहित्यिक सेवा में सबसे अहम भूमिका उनकी रचनाओं से भरी ग्रंथ हैं। इनमें से कई ग्रंथ उनकी वाणी के अनुवाद के आधार पर लिखे गए हैं जो संग्रहीत रचनाओं से मिलते-जुलते हैं। कुछ प्रमुख ग्रंथों में से कुछ निम्नलिखित हैं:

बीजक

यह ग्रंथ कबीर दास के संपूर्ण दोहों का संग्रह है। इसमें उनके दोहे समाज के अनेक मुद्दों पर विचार करते हैं।

साखी

यह ग्रंथ कबीर दास की व्यंग्य और कटुतापूर्ण वाणी पर आधारित है। इसमें उनके दोहों के अलावा कुछ छोटी-मोटी कविताए भी हैं।

कबीर जी के दोहे

कबीर जी के दोहे बहुत लोकप्रिय हैं और उनकी शिक्षाप्रद बातों को समझाने के लिए आज भी उपयोग में लाए जाते हैं। कुछ उनके महत्वपूर्ण दोहों के उदाहरण निम्नलिखित हैं।

पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोइ।
एकै आखर प्रेम का, पढ़ै सो पंडित होइ॥

भावार्थ: कबीर जी कहते है कि इस दुनिया में कोई भी ऐसा नहीं है जो वास्तविक ज्ञान रखने वाला हो।  वो कहते है कि लोग पुस्तक पढ़ते-पढ़ते मर गए पर कोई भी पंडित नहीं बन सका। लेकिन जो पिर्य परमात्मा के नाम का एक ही अक्षर प्रेम से जपता है वही सच्चा ज्ञानी और पंडित होता है। 

मेरा मुझ में कुछ नहीं, जो कुछ है सो तेरा।
तेरा तुझकौं सौंपता, क्या लागै है मेरा॥

कबीर जी कहते है कि इस दुनिया में मेरा जो कुछ भी है मेरी संपत्ति, धन आदि यह मेरा है ही नहीं यह तो सब परमात्मा का है। अगर यें मेरे है ही नहीं तो यह सब में तुझे ही समर्पित करता हु? यहाँ मेरा कुछ भी नहीं है?

कबीरदास का जीवन परिचय हिंदी में | कबीरदास का जन्म

कबीर, पत्थर पूजें हरि मिले तो मैं पूजूँ पहार।
तातें तो चक्की भली, पीस खाये संसार।।

कबीर जी कहते है कि अगर पत्थर को पूजने से हरि (भगवान ) मिलते है तो में क्यों न पहाड़ की पूजा करू? कबीर जी  चाहते है कि पत्थर को पूजने से कुछ प्राप्त नहीं होने वाला इससे अच्छा तो चक्की की पूजा करे जिससे हमें आटा भोजन मिलता है। 

काल करे सो आज कर, आज करे सो अब।
पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब॥

कबीर जी समय का महत्व बताते हुए कहते है की जो काम कल करना है उसे आज ही कर लो और जो काम आज करना है उसे अभी कर लो क्युकि समय बहुत कम है कब जाने कुछ हो जाए।

यह भी पढ़े: 
1- माँ दुर्गा जी की आरती||  2- ओम जय जगदीश हरे आरती 
3- शंकर जी की आरती 4- देवी सर्वभूतेषु मंत्र
5- आरती कुंजबिहारी की 6 – कबीरदास जी के दोहे

कबीरदास की मृत्यु

कबीरदास की मृत्यु सन 1494 ई० मगहर में हुई थी। कबीरदास जी मृत्यु के समय मगहर चले गए थे। उस समय प्रचीन तौर पर ये माना जाता था कि जो काशी में मृत्यु को प्राप्त होता है वह स्वर्ग में जायेगा और जिसकी मृत्यु मगहर में होगी उसे नरक प्राप्त होगा। 

कबीरदास Kashi

कबीर जी इसी सोच को तोड़ने के लिए अपने जीवन के अंतिम दिनों में मगहर चले गए थे। ऐसा माना जाता है कि उनकी मृत्यु के पश्चात् काफी विवाद उत्पन्न हो गया था।  हिन्दू लोग उनके देह के अंतिम संस्कार अपने रीति-रिवाजों से करना चाहते थे और मुस्लिम लोग उन्हें अपने रिवाजों से अंतिम विदाई देना चाहते थे। 

ऐसा माना जाता है कि विवाद के बाद जब उनके देह से चादर उठाई जाती है तब वहाँ कोई नहीं मिलता है वहाँ पर कुछ फूल मिलते है। बाद में उनके अंतिम संस्कार के लिए कुछ फूल और चादर का टुकड़ा हिन्दू और मुस्लिम लोगो को आपस में बाट दिया जाता है जिससे बाद में मुस्लिम लोगो ने उनका अंतिम संस्कार अपने रीति-रिवाजों से और हिंदू लोगों ने अपने रीति-रिवाजों से किया। 

आशा करते हैं की आपको यह जानकारी अच्छी लगी होगी। आप हमें अपने सुझाव और शिकायत के लिये नीचे कमैंट्स बॉक्स मैं जानकारी दें सकते हैं।

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नमस्कार 🙏दोस्तों, मेरा नाम विमला है। मैंने MA इंडियन हिस्ट्री (इतिहास) से किया है। मुझे इतिहास के बारे में लिखने का बहुत शौक है। इतिहास से मास्टर करने के बाद मैंने एक टीचर की जॉब की और साथ में ब्लॉग लिखने की भी शुरआत की। दोस्तों आपको मेरे ब्लॉग पोस्ट कैसे लगते है इस बारे में आप मुझे बता सकते है। मुझे सम्पर्क करने के लिए आप कमेंट बॉक्स में कमेंट कर सकते है। धन्यवाद !

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